आतंकवाद के मामले में फंसाए गए निर्दोष लोगों को मिले मुआवजा – दारापुरी

फर्ज़ी मामलों में फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध हो कानूनी कार्रवाही

लखनऊ 30 अक्तूबर, 2015:

कल लखनऊ की एक अदालत ने हुजी आतंकी संगठन के सदस्यों के नाम से आतंकवाद के

मामलों में 2007 में मायावती के शासनकाल में उत्तर प्रदेश एसटीऍफ़ द्वारा फंसाए गए 6

लोगों को निर्दोष मानते हुए न केवल रिहा कर दिया बल्कि यह भी कहा कि उन के पास से

बरामद किये गए हथियार और विस्फोटक भी पुलिस द्वारा ही रखे गए थे. इस निर्णय के

परिपेक्ष्य में आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस.आर दारापुरी, पूर्व आई.जी. ने

प्रेस नोट में यह मांग की है कि आतंकवाद के मामले में फंसाए गए निर्दोष मुसलमानों को

मुयावाज़ा दिया जाये और साथ ही उन्हें फर्जी मामलों में फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों के

विरुद्ध मुकदमा दर्ज करके कानूनी कार्रवाही की जाये.

इस मामले में निर्दोष पाए गए जलालुदीन, मोहमद अलीहुसैन , अजीजुर रहमान सरदार, शेख

मुख्तार और नूर इस्लाम बंगाल तथा नौशाद बिजनौर (यू.पी.) के रहने वाले हैं. इन में से

जलालुदीन और नौशाद को यूपी एसटीऍफ़ द्वारा 22 जुलाई, 2007 को रेजीडेंसी के पास से

एक AK-47, दो मैगज़ीन, 60 कारतूस और एक बैग जिस में 10 डेटोनेटर, 5 हैण्ड ग्रेनेड, 9

वोल्ट की बैटरी, अलार्म कलाक और कुछ कागजों के साथ गिरफ्तार करना दिखाया गया था.

नौशाद के पास से एक बैग में 15 हैण्ड ग्रेनेड, उच्च डिग्री के विस्फोटक बरामद होना दिखाया

गया था. इन दोनों की सूचना पर पुलिस ने 4 अन्य लोगों को प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से

अस्त्र-शास्त्र के साथ गिरफ्तार किया था. इस सम्बन्ध में वज़ीररगंज और मोहनलाल गंज

थानों पर मुक़दमे कायम किये गए थे. एसटीएफ ने यह भी दावा किया था कि इन लोगों ने

पूछताछ के दौरान रेलवे स्टेशन, धार्मिक स्थल, बस स्टैंड और अन्य महत्वपूर्ण स्थलों पर

बम्ब विस्फोट करने की योजना स्वीकार की थी. सात साल तक चले मुकदमे में पुलिस इन

अभियुक्तों के विरुद्ध कोई भी भरोसेयोग सबूत पेश नहीं कर सकी. अदालत ने अपने 51

पृष्ठ के निर्णय में कहा है पुलिस ने उन्हें अलग अलग जगह से उठाया था परन्तु उन की

गिरफ्तारी दूसरी जगह से दिखाई गयी. पुलिस के गवाहों के बयानों में गंभीर विरोधाभास पाए

गए. अदालत ने कहा है कि पुलिस के पास इन के विरुद्ध उन की स्वीकारोक्ति के सिवाए

कोई भी साक्ष्य नहीं था जबकि स्वीकारोक्ति मान्य साक्ष्य नहीं है. अदालत ने अपने निर्णय

में यह भी स्पष्ट रूप से कहा है कि इन लोगों से बरामद दिखाए गए अस्त्र-शास्त्र और

विस्फोटक पुलिस द्वारा स्वयं रखे गए थे.

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि उपरोक्त 6 लोगों को पुलिस द्वारा आतंकवाद के फर्जी

मामलों में फंसाया गया था और उन से बरामद दिखाए गए हथियार और विस्फोटक भी

पुलिस द्वारा अपने पास से रखे गए थे. ऐसी परिस्थिति में आईपीएफ मांग करती है कि एक

तो 7 साल तक जेल में रहे निर्दोष लोगों को सरकार की तरफ से मुयावाज़ा दिया जाये जिस

की वसूली दोषी पुलिस कर्मचारियों के वेतन से की जाये और दूसरे फर्जी केस बनाने तथा

अपने पास से AK-47 तथा विस्फोटक रखने के अपराध में दोषी पुलिस कर्मचारियों के विरुद्ध

मुकदमा दर्ज करके कानूनी कार्रवाही की जाये ताकि पुलिस की इन गैर कानूनी कार्रवाहियों

और ज्यादतियों पर रोक लग सके. यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो आइपीएफ इस मुद्दे

को लेकर जनांदोलन करेगी.

एस.आर.दारापुरी,

राष्ट्रीय प्रवक्ता,

आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट