उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों को बंद करने पर सोनभद्र जनपद के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र दुध्दी तहसील के कुछ गांवों में रोजगार अधिकार अभियान टीम द्वारा किए सर्वे की रिपोर्ट
आज इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने 16 जून 2025 उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने के आदेश के सीतापुर जनपद में 21 अगस्त 2025 तक क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है। गौरतलब है कि सरकारी विद्यालयों को बंद करने के आदेश को आमतौर पर लोग शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 का उल्लंघन मान रहे हैं। शिक्षा अधिकार अधिनियम स्पष्ट तौर पर 6 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सरकार द्वारा प्राप्त करने का संवैधानिक अधिकार प्रदान करता है। इसके पूर्व हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ की सिंगल बेंच ने भी इस संबंध में दाखिल रिट में दिए आदेश में यह कहा था कि बेसिक शिक्षा अधिकारी का यह दायित्व है कि वह हर बच्चे की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी करे। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में बंद होने वाले विद्यालयों की संख्या अभी तक 10000 से ज्यादा हो चुकी है और 27000 तक विद्यालय बंद होने की संभावना लोग व्यक्त कर रहे हैं।
सोनभद्र का आदिवासी बाहुल्य दुद्धी क्षेत्र पहले से ही शिक्षा के मामले में बेहद पिछड़ा हुआ है। काफी प्राथमिक विद्यालय एक टीचर या शिक्षक मित्रों के बदौलत चल रहे हैं। विद्यालयों में कक्षों, स्वच्छ पानी, शौचालय आदि की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। हाई स्कूल और इंटरमीडिएट सरकारी विद्यालयों के अभाव के कारण बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं। आदिवासी लड़कियों के लिए आवासीय सरकारी डिग्री कॉलेज बनाने की लोकप्रिय मांग को भी सुना नहीं जा रहा है। प्राथमिक विद्यालयों के बंद करने के सरकारी निर्णय का बेहद खराब प्रभाव इस आदिवासी अंचल में पड़ा है। इसी की जांच पड़ताल रोजगार अधिकार अभियान और युवा मंच की टीम ने की है। इसके कुछ केस इस प्रकार हैं।
केस संख्या -1- प्राथमिक विद्यालय, खालेडीह, डढ़ियरा, म्योरपुर ब्लाक में कुल छात्रों की नामांकन संख्या 48 है। मात्र एक टीचर यहां है। इस विद्यालय में आदिवासी गोड़, बैगा, खरवार के बच्चे पढ़ते हैं। इसके अलावा पिछड़े वर्ग के केवट और यादव जाति के बच्चे पढ़ते हैं। स्कूल में 2 क्लास रूम और एक अध्यापक कक्ष है। जिस विद्यालय में इस विद्यालय का विलय किया जा रहा है उसकी दूरी करीब ढाई किलोमीटर है।
वहां के निवासी हिरामन गोड़ ने कहा कि स्कूल बंद नहीं होना चाहिए क्योंकि छोटे-छोटे बच्चे दूर के स्कूल में नहीं जा पाएंगे।
वहां पर उपस्थित स्थानीय अभिभावक शांति देवी यादव, दुर्गावती देवी गोंड, शांति देवी गोंड, चंद्रावती, इंद्रदेव खरवार, सीता देवी,अनीता गोंड, शकुंतला गोंड,कलामती यादव ने विद्यालय बंद होने से सरकार से नाराज दिखे। बच्चों की पढ़ाई छूटने पर काफी गंभीर दिखे इन अभिभावकों ने कहा कि भीषण गरीबी में किसी तरह हम इस विद्यालय में अपने बच्चों को पढ़ा रहे थे और यदि यह विद्यालय बंद हुआ तो हमारे बच्चों की पढ़ाई छूट जाएगी।
केस संख्या -2- प्राथमिक विद्यालय दक्षिण बस्ती, खैराही में छात्रों की नामांकन संख्या 59 है। इस विद्यालय में सभी गोंड आदिवासी जाति के ही बच्चें हैं। इस विद्यालय में पहले 50 से कम बच्चे थे, इसलिए इसका नाम बंद होने वाले विद्यालय में था। बंदी की सूचना के बाद कुछ बच्चों का प्रवेश लिया गया है। इसमें भी मात्र एक ही टीचर है। यहां भी दो क्लासरूम व एक अध्यापक कक्ष है।
इंद्रावती गोंड ने कहा कि यहां पर टीचर की जरूरत है। यहां जो एक टीचर है स्कूल के काम से अगर कहीं चले जाते हैं तो हमें बच्चों को संभालना पड़ता है। यहां भी अध्यापक, अभिभावक और बच्चे विद्यालय की बंदी का विरोध कर रहे हैं। इस विद्यालय से दूसरे विद्यालय की दूरी करीब डेढ़ किलोमीटर है। जहां तक छोटे बच्चों को पहुंचना बेहद कठिन है। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण अभिभावक अन्य प्राइवेट विद्यालयों में भी बच्चों को पढ़ा पाने में सक्षम नहीं है।
केस संख्या -3- प्राथमिक विद्यालय, उत्तरी टोला बलियरी में कुल बच्चों की नामांकन संख्या 33 हैं। स्कूल में गोंड आदिवासी जाति के बच्चे पढ़ते हैं। एक शिक्षक और एक शिक्षा मित्र हैं। वहां पर शुद्ध पानी की व्यवस्था नहीं है। स्थानीय उपस्थित लोग रामप्रसाद गोंड, रजवंती गोंड, नीलम गोंड, रजवंती, हिरमतीया गोंड ने स्कूल बंद होने का विरोध किया।
केस संख्या -4- प्राथमिक विद्यालय, बरटोला किरवानी में छात्रों की नामांकन संख्या 33 है जिसमें गोंड और बैगा आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं। इसके अतिरिक्त मौर्या, तेली, यादव, दलित बच्चे पढ़ते हैं। बच्चे दरी में बैठते हैं क्योंकि वहां मेज और कुर्सी की भी व्यवस्था नहीं है।
स्थानीय निवासी विजय कुमार कुशवाहा ने कहा कि स्कूल में पर्याप्त टीचर नहीं है। एक टीचर के भरोसे 1-5 तक पढ़ाई जाती है। अच्छे से पढ़ाई नही होती इसलिए कुछ लोग प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को भेजते हैं। यहां के भी स्थानीय निवासी विद्यालय बंदी के विरोध में हैं।
इसके अलावा दुद्धी ब्लाक के 10 परिषदीय विद्यालयों का विलय किया गया है। जिसमें प्राथमिक विद्यालय डालापीपर, पगड़ेवा, फगुआडांड, पतरिहा, खड़ी टोला, हरपुरा का कुचधोईटोला, जामपानी, करमडांड का राजा पहाड़ और सतगडईया, कुशवाहा टोला, भुइंया बस्ती, धिवही के बैरिया खांडी हैं। इन सभी गांव के विद्यालयों में ज्यादातर आदिवासी बच्चे पढ़ते थे और विलय होने के बाद विद्यालय की दूरी बढ़ जाने के कारण बच्चों ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी है।
टीम का निष्कर्ष - जांच टीम ने पत्र भेजकर सरकार से आग्रह किया है कि वह विद्यालय बंदी के अपने आदेश पर पुनर्विचार करें। आदिवासी दलित बाहुल्य दुद्धी क्षेत्र में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए विशेष आर्थिक पैकेज दिया जाए। प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पर्याप्त संख्या में टीचरों की नियुक्ति की जाए। जर्जर विद्यालय भवनों का पुनर्निर्माण किया जाए और हर हाल में बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सुनिश्चित किया जाए। हर ब्लॉक में 10 किलोमीटर की दूरी में हाईस्कूल और इंटरमीडिएट कॉलेज खोलें जाए। दुध्दी तहसील में एक आवासीय आदिवासी लड़कियों का डिग्री कॉलेज बनाया जाए।
रोजगार अधिकार अभियान की टीम में युवा मंच जिला संयोजक सविता गोंड, जिलाध्यक्ष रुबी सिंह गोंड, एआईपीएफ के जिला संयोजक कृपाशंकर पनिका, रामविचार गोंड, इंद्रदेव खरवार आदि शामिल रहे।
सविता गोंड
जिला संयोजक
युवा मंच, सोनभद्र।