’एजेण्डा बदलिए - बदलिए राजनीति - बदलिए राजनीति का कथानक ’
’एजेण्डा बदलिए - बदलिए राजनीति - बदलिए राजनीति का कथानक ’
राजनीतिक तौर पर एजेण्डा बदलिए - बदलिए राजनीति का कथानक का यह मानना है कि अधिनायकवादी उत्तर प्रदेश सरकार के विरुद्ध लोकतांत्रिक राजनीति की जमीन मौजूद है। राजनीति के कथानक और एजेण्डा को बदल कर अधिनायकवादी सरकार से छुटकारा पाया जा सकता है।
बुलेट प्वाइंट्स
1- रोजगार सृजन और पूंजी पलायन पर रोक
रोजी-रोटी, खेती-बाड़ी, मजदूरी, मनरेगा, जिले व प्रदेश से पूंजी पलायन पर रोक, सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य और सहकारी समितियों के माध्यम से कृषि पैदावार के रख-रखाव और भंडारण की उचित व्यवस्था, सूक्ष्म और लघु उद्योग पर जोर, बंजर व सरकारी खाली जमीन का गरीबों में वितरण आदि।
2- रोजी-रोटी के साथ सामाजिक अधिकार का प्रश्न
पहचान आधारित भेदभाव और समुचित प्रतिनिधित्व व हिस्सेदारी से वंचित समुदायों अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक खासकर पसमांदा मुस्लिम और महिलाओं, के उचित प्रतिनिधित्व और शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार व आवास के लिए बजट में पर्याप्त धन की व्यवस्था।
3- रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य के बजट में बढ़ोतरी, सरकारी विभागों में रिक्त सभी पदों पर तत्काल भर्ती, तकनीकी शिक्षा व प्रशिक्षण को अपग्रेड करना, तकनीकी तौर पर प्रशिक्षित युवाओं के रोजगार हेतु अनुदान व सस्ते दर पर लोन के लिए सरकार सीधे बैंकों में गारंटर बने। महिला समूह, किसानों और बेरोजगारों का लोन दर चार प्रतिशत से ऊपर न हो। राज्य के बजट का मद बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार बड़े पूंजी घरानों की संपत्ति पर समुचित टैक्स लगाए। जीएसटी को सरल बनाएं। कृषि, डेयरी उत्पाद समेत सूक्ष्म व लघु उद्योग को आम तौर से जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाए।
4- नहरों के रख-रखाव और पर्यावरण की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। लोकतांत्रिक अधिकारों की हर हाल में रक्षा की जाए।
रोजी-रोटी, खेती-बाड़ी, प्रदेश से पूंजी पलायन पर रोक, वंचित समुदायों का सशक्तिकरण व पर्याप्त प्रतिनिधित्व, शिक्षा व स्वास्थ्य और पर्यावरण रक्षा जैसे सवाल इस अभियान में प्रमुख रूप से उठाए जा रहे हैं। इन मुद्दों को आर्थिक मांगों के नजरिए से न देखा जाए। दरअसल यह नीतिगत मुद्दे हैं जो मौजूदा राजनीतिक अर्थनीति की दिशा के विरुद्ध हैं। इस राजनीतिक अर्थनीति की वजह से ही कारपोरेट-हिंदुत्व गठजोड़ की ताकतें मजबूत हो रही हैं। यह जनता के हित में है कि इस राजनीतिक अर्थनीति की दिशा को इन जैसे मुद्दों के माध्यम से पलट दिया जाए। मैत्रीभाव, समता और आर्थिक सम्प्रभुता की बुनियाद पर ही लोकतांत्रिक राजनीति खड़ी हो सकती है और तानाशाही की राजनीति को शिकस्त दी जा सकती है।
इस अभियान को रोजगार और सामाजिक अधिकार अभियान का नाम दिया गया ।